गुरु ज्ञान का रूप है ,गुरु छाँव है धूप

गुरु तत्व चहु खींच रहा ,हो जाओ अब लीन
ज्यो ज्यो उसमे लीन हुआ ,हुआ कुशल प्रवीण

गुरु चरणों की आस रही ,प्यासे रहते नैन
दर्शन दो गुरुदेव हमें ,तव दर्शन से चैन
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आज्ञा प्रज्ञा चक्र है ,भेद सके तो भेद
गुरु बिन ज्ञान नहीं मिला ,पढ़ ले चाहे वेद
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गुरु ज्ञान का रूप है ,गुरु छाँव है धूप
धूप तेज और ओज दे ,छाया मात स्वरूप
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गुरु आशीष से ईश मिले ,गुरु हाथो तपिश
जप तप करते नहीं मिले ,सद्गुरु है जगदीश
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गुरु बिन मन व्याकुल रहा ,तन मन है गुरुकुल
अब न कोई मोल मिले ,गुरु चरणों की धुल
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गुरु पाये थे राम ने ,गुरु पाये हनुमान
गुरु अर्जुन के द्रोण रहे ,जगदगुरु घनश्याम
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गुरु पूर्णता सींच रहे ,खींच रहे है कान
हे गुरु देवो नमो : नम तुमसे पाया ज्ञान

दत्तात्रय गुरु देव हुए ,दे गये अमृत ज्ञान
हर कण में बिखरी हुई ,गुरुता को पहचान
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गुरुवर विश्वामित्र हुये,गुरुवर रहे वशिष्ठ
गुरु देवो के देव रहे ,दत्त गुरु विशिष्ट

गुरुवर परशुराम रहे ,बृहस्पति गुरुदेव
लघुता न कभी साथ रहे ,गुरुता संग सदैव

(नेट जाल से...)
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About the Author: This post is written by Abhijit


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